
किसी शख्स को पकड़िए और उसकी गर्दन पर तेज़ धार छुरी रख दीजिए वह फड़फड़ायेगा, लेकिन आप बेरहमी से उसका गला काट दीजिये और बाद में यह तर्क दीजिये की उसका गला इसलिए काट दिया गया क्योंकि वह फड़फड़ा रहा था और मामले को रफा दफा कर दीजिये..
आज़ादी के बाद से मुसलमानों का कितना विकास हुआ है हम सभी जानते हैं। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट मौजूद है जिसमे मुसलमानों के हालात दलितों से भी बदतर बताये गए हैं। हां वही राजेन्द्र सच्चर जिनका हाल ही में इंतेक़ाल हुआ है, लेकिन मुसलमानों का जितना राजनीतिक इस्तेमाल होता है मुझे नही लगता किसी और समाज का इतना और इतने घटिया तरीके से राजनीतिक इस्तेमाल होता है…
संघ के निशाने पर मुसलमान सीधे और साफ तरीके से हैं आये दिन वह मुसलमान के खिलाफ बयान देने से नही चूकते, बल्कि मौका मिलने पर अत्याचार करने से भी नही चूकते, पहले यह ज़हर सिर्फ राजनीतिक पार्टियों तक महफूज़ था। लेकिन अब यह ज़हर जनता के बीच आ गया है जिसका असर हमें अख़लाक़, पहलू खान और जुनैद की हत्या की शक्ल में देखने को मिला है, और लगातार हमलें हो ही रहे हैं।
2014 के बाद से मुसलमान पर हमले सीधे तौर से बढ़ गए हैं। अब जबकि मुसलमानों को खत्म करने का वादा करके सत्ता में आने वाली सरकार मौजूद है तो जाहिर सी बात है कि कुछ न कुछ गलत तो होना ही है। लेकिन उसके बावजूद भी मुसलमानों ने अपने सब्र का पुल नही तोड़ा, लगातार कानून के बीच ही जाकर अपने इंसाफ की गुहार लगाई है। यह जानते हुए भी की कानून व्यवस्था में इंसाफ मिलने के प्रतिशत कितने कम रह गए हैं, बार-बार इंसाफ मांगे उसी दरवाज़े चौखट पर पहुंच जाते हैं।
साथियों यह सब हथकंडे हैं हमें कमज़ोर और बहुत कमज़ोर करने के, हमारे घरों को फूंस का और हमारी प्लेटों को खाली करने का। हमें हर सुख सुविधा से वंचित करके हमें अपने ताबे करने का। मैं यह नही कहता कि मुक़ाबला सिर्फ हथियार से किया जा सकता है। सबसे बड़ा मुक़ाबला तो हमारे एक होकर संवैधानिक तरीके से लड़ने का है। दूसरा हथियार क़लम है जिसकी मार का ज़ख्म सदियों तक दिखाई देता है। हमे सिर्फ इंसाफ के लिए लड़ना है। हमे अमन के लिए लड़ना और हमे आने आत्मसम्मान के लिए लड़ना है। और लड़ना है तो अपने मुल्क़ को इन भावधारिओं से बचाने के लिए लड़ना है जो नाखूनों को बढ़ाये और दांतों को खून लगाए बैठे हैं…
इमरान
👍